सात मार्च को उनके जन्मदिन पर विशेष चर्चा
कुछ लोग सचमुच मसीहा बन कर ही इस धरती पर आते हैं। उन्हें व्यक्तिगत तौर पर कभी कोई कठिनाई नहीं होती। न रूपये पैसे की और न ही किसी और तरह की। केवल अन्य लोगों के गम को हटाना और उनके जीवन को सुखी बनाना ही उनका एक मात्र लक्ष्य बन जाता है। इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इस तरह के महान लोग अपने सभी सुख आराम छोड़ कर मुसीबतों और कठिनाईओं के रास्ते पर निकल पड़ते हैं। इसी तरह के लोगों में से एक थे कामरेड प्रदुमन सिंह। हर बार की तरह 7 मार्च को उनका जन्मदिन इस बार भी आने वाला है।
एक ऐसी शख्सियत का जन्मदिन जिसे चंडीगढ़ से प्रकाशित होने वाले लोकप्रिय मीडिया हाऊस "द ट्रिब्यून" ने पेंशन स्कीम का पितामह बताते हुए उल्लेख किया था। करीब डेढ़ पृष्ठों का एक लम्बा आलेख वरिंदर वालिया ने लिखा था।
यह बात विशेष उल्लेखनीय है कि वह अपनी आखिरी सांसों तक सक्रिय जीवन को समर्पित रहे। सुबह सुबह मुंह अँधेरे में उठना। अपने हाथों अपने लिए चाय का कप तैयार करना और ठीक चार बजे अपनी वर्किंग डेस्क पर आ कर बैठ जाना। वह अपनी किताबों को अक्सर सुबह सुबह ही किया करते क्यूंकि बाकी का दिन तो पार्टी के दफ्तर में मज़दूर वर्ग की समस्याएं सुनने और उन्हें हल करने में ही निकल जाता। इस लिए किताबों को पूरा करने का काम वह सुबह सुबह ही किया करते। आज उनकी बहुत सी पुस्तकें हमारे दरम्यान हैं जिनका अनुवाद और प्रकाशन पूरी दुनिया भर में पहुँच चूका है। कई भाषाओं में अब ये पुस्तकें उपलब्ध हैं।
गर्मी के मौसम में दोपहर को घर आ कर लंच करना और थोड़ा सा आराम करना। हम देखने वालों को बहुत ही हैरानी होती कि वह दोपहर को बिस्तर पर लेटते वक़्त तो घड़ी पर एक नज़र डालते लेकिन उसके बाद नहीं इसके बावजूद ठीक 20 मिंट बाद बिना घड़ी देखे वह उठ पड़ते। उनके इस 20 मिंट के आराम को कभी किसी ने भी 21 या 22 मिंट होते न देखा। हर रोज़ केवल 20 मिंट की ब्रेक और उसके बाद चाय का कप पी कर फिर दफ्तर की तरफ। उनका यह रूटीन न कभी आंधी में टूटा और न ही कभी तेज़ बरसात में। यहां तक कि आतंक के दिनों में भी उन्होंने मज़दूर वर्ग की समस्यायों को हल करने का सिलसिला कभी न टूटने दिया।
उन्हें कभी किसी ने ज़्यादा बोलते हुए भी न सुना। रोज़ की ज़िंदगी में भी वह बहुत कम बोलते वह भी केवल ज़रूरत पड़ने पर। उन्होंने बहुत से लोगों की सहायता भीकी, कई कई बार की लेकिन इसका भी कभी प्रचार न होने दिया। उन्होंने ज़िंदगी भर इस असूल को अपनाये रखा कि अगर एक हाथ से किसी की सहायता करो तो इसकी खबर अपने ही दुसरे हाथ को भी न होने दो।
कामरेड सतपाल डांग उनके बचपन के साथी थे। शिक्षा के दिनों में भी एक दो क्लास सीनियर थे। इस वरिष्ठता को कामरेड प्रदुमन सिंह कभी न भूले। ज़िंदगी के रूटीन और और सीपीआई पार्टी कामकाज के वक़्त भी उन्होंने ज़िंदगी भर इस सीनियरिटी को हमेशां याद रखा। आजकल एक दुसरे को पछाड़ कर आगे निकलने का जो रिवाज चल पड़ा है उसकी हवा उन्हें छू भी न पाई थी।
मध्य वर्गीय परिवारों का हिस्सा होने के कारण ज़िंदगी हम लोगों को भी अक्सर परेशान कर देती थी। ऐसी तीखी परेशानी जिसका हल कभी नज़र न आता लेकिन उनसे थोड़ी देर बात कर के हम लोग नए उत्साह से भर जाते। मुश्किलों से लड़ने की एक नई हिम्मत आ जाती। हम मुश्किलों की तरफ देख कर उनसे घबराने की बजाये मुस्कराने वाली स्थिति में आ जाते। उनके बाद उनकी यादें भी हमें हिम्मत देती हैं लेकिन जो बात उनकी मौजूदगी में थी वह अब उनके बाद कहाँ!
सात मार्च को उनका जन्मदिन हम सभी को एक बार फिर से वही शक्ति, वही ऊर्जा, वही प्रेरणा दे रहा है। जब तक स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं होता तब तक हमें इस तरह की ऊर्जा और शक्ति की ज़रूरत कदम कदम पर पड़ती रहेगी। पूरा जीवन शोषण से मुक्त समाज के नव निर्माण में लगा देने वाली ऐसी शख्सियतों की यादों के उजाले ही हमारा मर्गदर्शन करेंगे। --रेक्टर कथूरिया